हम हैं बेरोज़गार, हमें कोई रोज़गार मिले।
गए हैं हम ऊब, न अब हमें और इंतजार मिले॥
बचपन से ही किया हमने शुरु पढ़ना।
परिस्थितियों से हमने सिखा अड़ना।
वो समय ऐसा था गुलशन में फूल खिलें।
गए हैं हम ऊब..............................॥
आई युवावस्था किया हमने अथक प्रयास।
कोई भी जगह जाने में नहीं हुए उदास।
लेकिन अब इस निराशा से न कोई मेल मिले।
गए हैं हम ऊब..........................................॥
मकर की उम्र पर ध्यान नहीं देती सरकार।
हम बेरोज़गारों से मुहँ फेर चुके करतार।
करर्ते हैं हम विनती, कहीं हमें रोज़गार मिले।
गए हम ऊब............................................॥
रोज़गार के इंतजार में आया अंत में बुढ़ापा।
उम्र और गरीबी के तकाज़े में हमने खो दिया आपा।
लेकिन फिर भी सोचते हैं, कहीं कोई बहार मिले।
गए है हम ऊब, न अब हमें इंतजार मिले।
हम हैं बेरोज़गार, हमे कोई रोज़गार मिले॥
तेज पाल रंगा
पी जी टी हिंदी
ज न वि चिरांग आसाम
Wednesday, January 13, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment