Creativity should come out

The main aim of this magazine is to bring out and display the creativity of students in Navodya Vidyalayas located all over India. Any navodayan can send his/her creations ( Hindi or English Literature, Paintings,Sculpture or any other type of art ) to anmolsaab@gmail.com for publishing in this magazine. Clearly mention your name ,class and name of the navodaya. If found fit, it will be published. To avoid delay in publishing or loss of email, send it with "for- hami navodaya hon " in subject line. Photographs of school functions (with captions) may also be sent.
Representatives of various Navodayas are also invited to join our authors list. By joining this list they will get right to post their articles directly to the blog.
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Monday, October 4, 2010

हमारी जात हिन्दी, धर्म है ईमान है हिन्दी

हमारी आन है हिन्दी हमारी शान है हिन्दी
हमारे प्यारे हिन्दोस्तान की पहचान है हिन्दी

हमारी माँ है हिन्दोस्तान की धरती जहाँ वालो
हमारी जात हिन्दी, धर्म है ईमान है हिन्दी

समूचा ज्ञान हमने हिन्दी के कदमों में पाया है
हमारा वेद है हिन्दी हमे कुरआन है हिन्दी

हमें हिन्दोसितां को फिर वही दर्जा दिलाना है
कि हिन्दोस्तान के उत्थान का ऐलान है हिन्दी

सभी भारत की भाषाओं की है हिन्दी बड़ी दीदी
महब्बत से सभी बहनों का रखती ध्यान है हिन्दी


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रवि कांत 'अनमोल'
मेरी रचनाएं
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कविता कोश पर मेरी रचनाएं
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Sunday, July 18, 2010

खिलने दो ख़ुश्बू पहचानो, कलियों का सम्मान करो

              ग़ज़ल
खिलने दो ख़ुश्बू पहचानो, कलियों का सम्मान करो
माली हो मालिक मत समझो, मत इतना अभिमान करो

जंग के बाद भी जीना होगा, भूल नहीं जाना प्यारे
जंग के बाद का मंज़र सोचो, जंग का जब ऐलान करो

कंकड़-पत्थर हीरे-मोती, दिखने में इक जैसे हैं
पत्थर से मत दिल बहलाओ, हीरे की पहचान करो

इस दुनिया का हाल बुरा है, इस जग की है चाल अजब
अपने बस के बाहर है यह, कुछ तुम ही भगवान करो

मंज़िल तक पहुँचाना है जो, मेरे घायल कदमों को
कुछ हिम्मत भी दो चलने की, कुछ रस्ता आसान करो

मरना चाहे बहुत सरल है, जीना चाहे मुश्किल है
मरने की मत दिल में ठानों, जीने का सामान करो

खो जाओगे खोज खोज कर, बाहर क्या हासिल होगा
ख़ुद को खोजो ख़ुद को जानो, बस अपनी पहचान करो

रवि कांत ’अनमोल’

Friday, January 22, 2010

नवोदय प्रार्थना

हम नवयुग की नई भरती , नई आरती
हम स्वराज की ऋचा नवल
भारत की नव -लय हों
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमीं नवोदय हों ..........
हम नव युग की ................
रंग -जाति-पाति , पद- भेद रहित
हम सबका एक भगवान हो
संतानें धरती माँ की हम
धरती पूजा स्थान हो
पूजा के खिल रहे कमल - दल
हम नव जल में हों
सूर्योदय के नव बसंत के हमी नवोदय हों
हम नवयुग की.................!!

मानव हैं हम हलचल हम
प्रकृति के पावन देश की
खिले फले हम में संस्कृति
इस अपने भारत देश की
हम हिमगिरी हम नदियाँ
हम सागर की लहरें हों ....
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमी नवोदय हों
हम नवयुग की ....................
हरी दुधिया क्रांति शान्ति के
श्रम के बंदनवार हों ...
भागीरथी हम धरती माँ के
सुरम वीर पहरेदार हों
सत्यम शिवम् सुन्दरम की नई
पहचान बनाये जग में हम
अन्तरिक्ष के ज्ञान - यान के हमी
नवोदय हों ...
हम नवयुग की ............

Wednesday, January 13, 2010

आशा बेरोज़गार की

हम हैं बेरोज़गार, हमें कोई रोज़गार मिले।

गए हैं हम ऊब, न अब हमें और इंतजार मिले॥

बचपन से ही किया हमने शुरु पढ़ना।

परिस्थितियों से हमने सिखा अड़ना।

वो समय ऐसा था गुलशन में फूल खिलें।

गए हैं हम ऊब..............................॥

आई युवावस्था किया हमने अथक प्रयास।

कोई भी जगह जाने में नहीं हुए उदास।

लेकिन अब इस निराशा से न कोई मेल मिले।

गए हैं हम ऊब..........................................॥

मकर की उम्र पर ध्यान नहीं देती सरकार।

हम बेरोज़गारों से मुहँ फेर चुके करतार।

करर्ते हैं हम विनती, कहीं हमें रोज़गार मिले।

गए हम ऊब............................................॥

रोज़गार के इंतजार में आया अंत में बुढ़ापा।

उम्र और गरीबी के तकाज़े में हमने खो दिया आपा।

लेकिन फिर भी सोचते हैं, कहीं कोई बहार मिले।

गए है हम ऊब, न अब हमें इंतजार मिले।

हम हैं बेरोज़गार, हमे कोई रोज़गार मिले॥


तेज पाल रंगा


पी जी टी हिंदी 
ज न वि चिरांग आसाम 

मेरी मनपसंद पंक्तियाँ


ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं  सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

दुष्यंत कुमार

प्रेषक : तेज पाल रंगा
पी जी टी हिंदी ज न वि चिरांग आसाम

Monday, January 11, 2010

गीत - रवि कांत

गीत
लकड़ी के ये खिलौने, दिल को लुभा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

बचपन जहां पे बीता, वो घर यहीं कहीं है
वो रीछ वो मदारी, बंदर यहीं कहीं है
बच्चे कहीं पे मिल के, हल्ला मचा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

नादान से वो सपने, छुटपन में जो बुने थे
किस्से बड़े मज़े के, दादी से जो सुने थे
किस्से वो याद आ कर, फिर गुदगुदा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

भाई ने प्यार से ज्यूं, आवाज़ दी है मुझको
काका ने जैसे कोई, ताक़ीद की है मुझको
ऐसा लगा पिताजी मुझको बुला रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

ये किसकी गुनगुनाहट, लोरी सुना रही है
जैसे कि माँ थपक के, मुझको सुला रही है
क्यूं नींद में ये आँसू, बहते ही जा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं


रवि कांत
टी०जी०टी० हिन्दी
ज०न०वि० चिराँग
आसाम