चाहत .......
चाहे शबनम हों या बादल
मैं तो धरती की धधकती छाती पर
तुमसे माँगा एक बूंद पानी !
चाहे मलय हों या तूफ़ान -
मैंने इतना माँगा था की
तुम उड़ा लो आहट और गम की कहानी
कहते हैं लोग - प्यार की रंग हैं लाल
मैंने देखा नफरत से रंगाई लाल मिटटी !
तुम सिर्फ हरियाली दो
नीले गगन दो
और पिंजर से हर बिहंग की छुट्टी
तुम प्लावन बनो या प्रलय !
धो डालो धरती पर जमी हर कालिमा को
तुम महासागर या हिमालय !
अवतार हों या महा-प्रलय !
ख़त्म करदो कातिल की एह अट्टहास !
हे महाकाल! हे प्रकाश !
धरती पर सिर्फ चांदनी दो
चिड़िया की कल तान और नई सुबह की रौशनी
तमान्ना है एक नई सुबह की
तमन्ना है फुल बनकर खिलने की -
तुम सिर्फ एह आग बुझाओ
धरती पर बरसाओ दो बूंद पानी!
.......... अपूर्व मजुमदार ज न वी चिरांग ( असम )
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