Creativity should come out

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Saturday, January 16, 2010

मोहन (रेखाचित्र) - अमित दास

                                                             मोहन
एक दिन की बात है -जब मैं हवाई जहाज से मुंबई जा रहा था। तब मुझे अपने पुराने दोस्त मोहन की याद आई। हम सब साथ-साथ रहते और खेलते थे। मोहन का जन्म १२ जनवरी, सन् १९९४ में हुआ था। वह मुझसे एक साल बड़ा है। हम दोनों बचपन से ही बहुत अच्छे मित्र थे। मोहन का प्रिय खेल फुटबॉल था हम लोग उसे लाला कहकर बुलाते थे, क्योंकि उसका चेहरा लाल था और वह पढ़ने में बहुत होशियार था। वह दिन भर पढ़ता रहता था। जब समय मिलता, तब वह डायरी भी लिखता था। वह हर समय कुछ--कुछ करता ही रहता था। वह पढ़ने के साथ-साथ खेलता भी था और न जाने क्या-क्या करता रहता था। जब वह वार्षिक परीक्षा पास करके अपने मामा के घर घूमने जा रहा था, तब अचानक उसकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और वह घायल हो गया। उसके सिर पर गहरी चोट आई। उसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया। हम लोगों ने अस्पताल जाकर देखा कि उसके सिर पर पट्टियाँ बंधी हुई हैं। जब उसे होश आया तो हमने उससे बात करने की कोशिश की, परन्तु डॉक्टर ने हम लोगों को उससे बात करने नहीं दिया, क्योंकि उसका जख्म ज्यादा गहरा था और दिमागी हालत कुछ ठीक नहीं थी। उसको अभी होश आया था। हमने उससे बात नहीं की। अगले दिन जब मैं उससे मिलने के लिए अस्पताल गया तो वह कुछ-कुछ बातें कर रहा था। मैंने उससे थोड़ी देर बातें की।

एक सप्ताह बाद डॉक्टर ने मोहन को घर जाने की अनुमति दे दी। मोहन ज्यादा अमीर नहीं था। इसलिए उसका इलाज अच्छे अस्पताल में नहीं हो सका। उसका इलाज सरकारी अस्पताल में ही हुआ और वह धीरे-धीरे अच्छा हो गया। वह कुछ खेलने लगा था। ज्यादा मेहनत करने से उसे सिरदर्द होने लगता था, इसलिए वह ज्यादा नहीं पढ़ता था। जब वह ठीक हो गया तो मैंने पुछा कि वह दुर्घटना कैसे हुई ? उसने बताया कि जब मैं बस पर सवार होकर मामा के घर जा रहा था, तब अचानक बस के सामने एक बूढ़ा आदमी आ गया और उसे बचाने की कोशिश में ड्राइवर ने बस को एक पेड़ से टकरा दिया ।
दुर्घटना होने के बाद मोहन एक महीने तक स्कूल न जा सका। इसलिए उसका स्कूल-कार्य बहुत ज्यादा हो गया। वह उसे खत्म करने के लिए मुझे और अन्य मित्रों को कुछ सहायता करने के लिए कहा। इस तरह उसका स्कूल-कार्य कुछ ही दिनों में खत्म हो गया। इसके बाद हम लोग फिर से पहले की तरह रहने लगे।
मैं ऐसी बातों में डूबा हुआ था कि मेरा हवाई जहाज मुंबई पहुँच गया।
- अमित दास ,कक्षा-९, ज० न० वि० चिरांग

प्रेषक : तेज पाल रंगा , पी.जी.टी.हिन्दी, ज०न०वि० चिरांग

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