Creativity should come out

The main aim of this magazine is to bring out and display the creativity of students in Navodya Vidyalayas located all over India. Any navodayan can send his/her creations ( Hindi or English Literature, Paintings,Sculpture or any other type of art ) to anmolsaab@gmail.com for publishing in this magazine. Clearly mention your name ,class and name of the navodaya. If found fit, it will be published. To avoid delay in publishing or loss of email, send it with "for- hami navodaya hon " in subject line. Photographs of school functions (with captions) may also be sent.
Representatives of various Navodayas are also invited to join our authors list. By joining this list they will get right to post their articles directly to the blog.

Sunday, January 31, 2010

तमन्ना ....

मैंने तो अपने आपको लुटा दिया

मुट्ठी भर इस धरती में --

अब तो बस समां गया हूँ मैं

धुल में, बन में और फूलों में।

अब मैं मेघमाला , निर्मल जलधारा

स फेन तरंग हूँ मैं !

शीतल मलय , भयानक तूफान

और सुबह का किरण हूँ मैं !

बस एक तमन्ना - सतरंगी इन्द्रधनुष से ,

सजाऊँ एह नीले चित्रपट ।

उपल से उपल छूकर बहती चलूँ

कलकल छल छल करूँ बात ।

तमन्ना एक थी मेरी - छूकर मरुभूमि

प्राणहीन कठिन चट्टान ,

सजाऊँ फूलों की मेला , खेले तितली हरेक -

बन में बिहंग की कलतान ।

.............अपूर्व मजुमदार

Thursday, January 28, 2010

चाहत .......

चाहे शबनम हों या बादल

मैं तो धरती की धधकती छाती पर

तुमसे माँगा एक बूंद पानी !

चाहे मलय हों या तूफ़ान -

मैंने इतना माँगा था की

तुम उड़ा लो आहट और गम की कहानी

कहते हैं लोग - प्यार की रंग हैं लाल

मैंने देखा नफरत से रंगाई लाल मिटटी !

तुम सिर्फ हरियाली दो

नीले गगन दो

और पिंजर से हर बिहंग की छुट्टी

तुम प्लावन बनो या प्रलय !

धो डालो धरती पर जमी हर कालिमा को

तुम महासागर या हिमालय !

अवतार हों या महा-प्रलय !

ख़त्म करदो कातिल की एह अट्टहास !

हे महाकाल! हे प्रकाश !

धरती पर सिर्फ चांदनी दो

चिड़िया की कल तान और नई सुबह की रौशनी

तमान्ना है एक नई सुबह की

तमन्ना है फुल बनकर खिलने की -

तुम सिर्फ एह आग बुझाओ

धरती पर बरसाओ दो बूंद पानी!

.......... अपूर्व मजुमदार ज न वी चिरांग ( असम )

Tuesday, January 26, 2010

On The Occasion Of Republic DayIndia is an old country, but a young nation (with almost 50 % people in Young age group); and like the young everywhere, we are impatient. I am young and I too have a dream. I dream of an India, strong, independent, self reliant and in the forefront of the front ranks of the nations of the world in the service of mankind. Without dedication to our dutyand sincerety to ourselves it would be difficult.

गणतंत्र दिवस 2010

republic day at jnv chirang 2010

republic day

Friday, January 22, 2010

Sculpture by APURBA MAZUMDER, art teacher JNV Chirang ,assam


नवोदय प्रार्थना

हम नवयुग की नई भरती , नई आरती
हम स्वराज की ऋचा नवल
भारत की नव -लय हों
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमीं नवोदय हों ..........
हम नव युग की ................
रंग -जाति-पाति , पद- भेद रहित
हम सबका एक भगवान हो
संतानें धरती माँ की हम
धरती पूजा स्थान हो
पूजा के खिल रहे कमल - दल
हम नव जल में हों
सूर्योदय के नव बसंत के हमी नवोदय हों
हम नवयुग की.................!!

मानव हैं हम हलचल हम
प्रकृति के पावन देश की
खिले फले हम में संस्कृति
इस अपने भारत देश की
हम हिमगिरी हम नदियाँ
हम सागर की लहरें हों ....
नव सूर्योदय नव चंद्रोदय
हमी नवोदय हों
हम नवयुग की ....................
हरी दुधिया क्रांति शान्ति के
श्रम के बंदनवार हों ...
भागीरथी हम धरती माँ के
सुरम वीर पहरेदार हों
सत्यम शिवम् सुन्दरम की नई
पहचान बनाये जग में हम
अन्तरिक्ष के ज्ञान - यान के हमी
नवोदय हों ...
हम नवयुग की ............

Wednesday, January 20, 2010

Tuesday, January 19, 2010

winners


Remember, winners don't do different things, they do
things differently!

Success quotes

1/1

"Anything in life worth having is worth working for." - Andrew Carnegie

1/2

"Success often comes to those who dare to act. It seldom goes to the timid who

are ever afraid of the consequences." - Jawaharlal Nehru

1/3

"Success is never ending, failure is never final." - Dr. Robert Schuller

1/4

"I just love when people say I can't do something because all my life people said

I wasn't going to make it." - Ted Turner

1/5

"Great thoughts speak only to the thoughtful mind, but great actions speak to all

mankind." - Emily P. Bissell

1/6

"Obstacles are those frightful things you can see when you take your eyes off

your goal." - Henry Ford

1/7

"It takes a strong fish to swim against the current. Even a dead one can float with

it." - John Crowe

1/8

"You will never find time for anything. You must make it." - Charles Buxton

1/9

"Remove failure as an option." - Joan Lunden

Monday, January 18, 2010

मेरी माँ (रेखाचित्र) - आजमीना बेगम

        इस दुनिया मे सबसे बड़ा कौन -माँ !
        इस दुनिया में कोई भी चीज माँ से बढ़कर नही है। इस दुनिया में एक छोड़कर सबको भूल सकते है और वह है -माँ। मेरी माँ की उम्र है -पैंतीस साल। मेरे तीन भाई और एक बहन है। माँ सभी को ही बहुत प्यार करती है। पर मुझे ऐसा क्यों लगता है कि सबसे ज्यादा माँ मुझे ही प्यार करती है।
       मैं ज..वि.चिरांग में पड़ती हूँ। यहाँ हम विद्यालय में ही रहते है। मैं जब बहुत दिनों बाद घर जाती हूँ तो माँ बहुत खुश हो जाती है। ऐसी खुश हो जाती है, मानो उसे दुनिया की सभी खुशियाँ मिल गई हों।

       माँ खुद न खाकर हमे खिलाना चाहती है। वह कष्ट उठाकर, जितना हो सके हमारी इच्छाओं को पूरा करना चाहती है। जब हम बीमार होते हैं तो वह रात-दिन जागकर हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखती है।
       समय-समय पर दवाई-पानी पिलाती है। जब हम शरारत करते हैं तो हमें पापा डाटते हैं। लेकिन एक माँ ही है जो हमे प्यार से समझाती है और बताती है कि हमे किस तरह से जीवन में आगे बढ़ना है। वह हमें कभी भी अपना दुख-कष्ट नही बताती। मैं जब छात्रावास में रहती हूँ , तब घर की याद आती है, लेकिन विशेष रुप से सिर्फ माँ ही ज्यादा याद आती है।
         अगर कोई माँ क्रोधित होता है तो वह चुपचाप सहन लेती है ,क्योंकि उसे पता है कि अगर वह कुछ विपरीत बोलेंगी तो बात बहुत बड़ी हो जाएगी। वह इस प्रकार बात को बढ़ाना नहीं चाहती। उसका यह गुण मुझे बहुत अच्छा लगा है। मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि मैं भी ऐसी हीनू। वह हमे सदा सच बोलने ऒर सच्चाई में रहने के लिए बोलती है
         माँ हमें भिन्न-भिन्न प्रकार की कहानियाँ सुनाती है और बताती है कि किस तरह सच्चाई की राह पर हम जीवन मॆं आगे बढ़ें वह सदा अपना काम ठीक समय पर कर लेती हैं। उसके ये सब गुण मुझे अपनी ओर खीचते है। माँ के बिना एक घर अधुरा है। हम यह कह सकते है कि माँ ही एक परिवार कीखवाली है, क्योंकि सुबह से लेकर रात तक घर को साफ-सुथरा रखना, खाना-पीना, नहाना-धोना आदि काम दिन भर बिना रुकाव के करती है। वह कभी भी अपनी थकाव को नहीं दिखने देती। इस तरह वह दिन-भर अपने घर के अंदर से लेकर बाहर तक के कार्य सम्पन्न कर लेती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि माँ के बिना एक घर या परिवार अधुरा हैं।

नाम -आजमिना बेगम
कक्षा-(बी)
ज०न०वि० चिरांग(आसाम)





प्रेषक
तेज पाल रंगा
पी०जी०टी०(हिन्दी)
ज०न०वि० चिरांग(आसाम)

Sculpture by APURBA MAZUMDER art teacher JNV Chirang ,assam



Sculpture by APURBA MAZUMDER art teacher JNV Chirang ,assam

Saturday, January 16, 2010

मोहन (रेखाचित्र) - अमित दास

                                                             मोहन
एक दिन की बात है -जब मैं हवाई जहाज से मुंबई जा रहा था। तब मुझे अपने पुराने दोस्त मोहन की याद आई। हम सब साथ-साथ रहते और खेलते थे। मोहन का जन्म १२ जनवरी, सन् १९९४ में हुआ था। वह मुझसे एक साल बड़ा है। हम दोनों बचपन से ही बहुत अच्छे मित्र थे। मोहन का प्रिय खेल फुटबॉल था हम लोग उसे लाला कहकर बुलाते थे, क्योंकि उसका चेहरा लाल था और वह पढ़ने में बहुत होशियार था। वह दिन भर पढ़ता रहता था। जब समय मिलता, तब वह डायरी भी लिखता था। वह हर समय कुछ--कुछ करता ही रहता था। वह पढ़ने के साथ-साथ खेलता भी था और न जाने क्या-क्या करता रहता था। जब वह वार्षिक परीक्षा पास करके अपने मामा के घर घूमने जा रहा था, तब अचानक उसकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और वह घायल हो गया। उसके सिर पर गहरी चोट आई। उसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया। हम लोगों ने अस्पताल जाकर देखा कि उसके सिर पर पट्टियाँ बंधी हुई हैं। जब उसे होश आया तो हमने उससे बात करने की कोशिश की, परन्तु डॉक्टर ने हम लोगों को उससे बात करने नहीं दिया, क्योंकि उसका जख्म ज्यादा गहरा था और दिमागी हालत कुछ ठीक नहीं थी। उसको अभी होश आया था। हमने उससे बात नहीं की। अगले दिन जब मैं उससे मिलने के लिए अस्पताल गया तो वह कुछ-कुछ बातें कर रहा था। मैंने उससे थोड़ी देर बातें की।

एक सप्ताह बाद डॉक्टर ने मोहन को घर जाने की अनुमति दे दी। मोहन ज्यादा अमीर नहीं था। इसलिए उसका इलाज अच्छे अस्पताल में नहीं हो सका। उसका इलाज सरकारी अस्पताल में ही हुआ और वह धीरे-धीरे अच्छा हो गया। वह कुछ खेलने लगा था। ज्यादा मेहनत करने से उसे सिरदर्द होने लगता था, इसलिए वह ज्यादा नहीं पढ़ता था। जब वह ठीक हो गया तो मैंने पुछा कि वह दुर्घटना कैसे हुई ? उसने बताया कि जब मैं बस पर सवार होकर मामा के घर जा रहा था, तब अचानक बस के सामने एक बूढ़ा आदमी आ गया और उसे बचाने की कोशिश में ड्राइवर ने बस को एक पेड़ से टकरा दिया ।
दुर्घटना होने के बाद मोहन एक महीने तक स्कूल न जा सका। इसलिए उसका स्कूल-कार्य बहुत ज्यादा हो गया। वह उसे खत्म करने के लिए मुझे और अन्य मित्रों को कुछ सहायता करने के लिए कहा। इस तरह उसका स्कूल-कार्य कुछ ही दिनों में खत्म हो गया। इसके बाद हम लोग फिर से पहले की तरह रहने लगे।
मैं ऐसी बातों में डूबा हुआ था कि मेरा हवाई जहाज मुंबई पहुँच गया।
- अमित दास ,कक्षा-९, ज० न० वि० चिरांग

प्रेषक : तेज पाल रंगा , पी.जी.टी.हिन्दी, ज०न०वि० चिरांग

"BUDDHA" water colour by Apurba Mazumder ,art teacher JNV CHIRANG



"BUDDHA" water colour by Apurba Mazumder ,art teacher JNV CHIRANG

Wednesday, January 13, 2010

"BUDDHA"


" BUDDHA" THE WAX SCULPTURE DONE BY APURBA MAZUMDER

आशा बेरोज़गार की

हम हैं बेरोज़गार, हमें कोई रोज़गार मिले।

गए हैं हम ऊब, न अब हमें और इंतजार मिले॥

बचपन से ही किया हमने शुरु पढ़ना।

परिस्थितियों से हमने सिखा अड़ना।

वो समय ऐसा था गुलशन में फूल खिलें।

गए हैं हम ऊब..............................॥

आई युवावस्था किया हमने अथक प्रयास।

कोई भी जगह जाने में नहीं हुए उदास।

लेकिन अब इस निराशा से न कोई मेल मिले।

गए हैं हम ऊब..........................................॥

मकर की उम्र पर ध्यान नहीं देती सरकार।

हम बेरोज़गारों से मुहँ फेर चुके करतार।

करर्ते हैं हम विनती, कहीं हमें रोज़गार मिले।

गए हम ऊब............................................॥

रोज़गार के इंतजार में आया अंत में बुढ़ापा।

उम्र और गरीबी के तकाज़े में हमने खो दिया आपा।

लेकिन फिर भी सोचते हैं, कहीं कोई बहार मिले।

गए है हम ऊब, न अब हमें इंतजार मिले।

हम हैं बेरोज़गार, हमे कोई रोज़गार मिले॥


तेज पाल रंगा


पी जी टी हिंदी 
ज न वि चिरांग आसाम 

मेरी मनपसंद पंक्तियाँ


ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं  सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

दुष्यंत कुमार

प्रेषक : तेज पाल रंगा
पी जी टी हिंदी ज न वि चिरांग आसाम

Monday, January 11, 2010

Paintings by Students of JNV Chirang, Assam

Paintings by Students of JNV Chirang, Assam




Painting by Mayuri saha Class VI B JNV Chirang, Assam









Painting by Debojit Barman Class VIII B JNV Chirang, Assam

Painting by Debojit Barman Class VIII B JNV Chirang, Assam
Posted by Apurba Mazumder Art Teacher JNV Chirang, Assam

गीत - रवि कांत

गीत
लकड़ी के ये खिलौने, दिल को लुभा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

बचपन जहां पे बीता, वो घर यहीं कहीं है
वो रीछ वो मदारी, बंदर यहीं कहीं है
बच्चे कहीं पे मिल के, हल्ला मचा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

नादान से वो सपने, छुटपन में जो बुने थे
किस्से बड़े मज़े के, दादी से जो सुने थे
किस्से वो याद आ कर, फिर गुदगुदा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

भाई ने प्यार से ज्यूं, आवाज़ दी है मुझको
काका ने जैसे कोई, ताक़ीद की है मुझको
ऐसा लगा पिताजी मुझको बुला रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं

ये किसकी गुनगुनाहट, लोरी सुना रही है
जैसे कि माँ थपक के, मुझको सुला रही है
क्यूं नींद में ये आँसू, बहते ही जा रहे हैं
बचपन के दिन सुहाने, फिर याद आ रहे हैं


रवि कांत
टी०जी०टी० हिन्दी
ज०न०वि० चिराँग
आसाम